7वां वेतन आयोग: सरकारी कर्मचारियों के लिए बदलाव का दौर
आज़ादी के बाद भारत सरकार ने देश के विकास के लिए कई अहम कदम उठाए. इनमें से एक महत्वपूर्ण कदम था सरकारी कर्मचारियों के लिए उचित वेतन व्यवस्था का निर्माण करना. पहले छह वेतन आयोग (1946 से 2008) ने इस दिशा में अहम भूमिका निभाई थी. लेकिन बदलते आर्थिक हालात और ज़रूरतों को पूरा करने के लिए और भी कदम उठाए जाने की ज़रूरत थी.
इसी उद्देश्य को मध्य नजर रखते हुए सन 2014 में भारत सरकार ने सातवां वेतन आयोग (7th Pay Commission) का गठन किया. आइए, इस लेख में 7वें वेतन आयोग और उसकी सिफारिशों के बारे में विस्तार से जानते हैं.
7वें वेतन आयोग का गठन
7वें वेतन आयोग का गठन फरवरी 2014 में किया गया था. यह आयोग भारत के स्वतंत्र होने के लगभग 67 साल बाद बनाया गया था. इस आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति (Justice) अशोक कुमार मथुर जी थे. आयोग में कुल छह सदस्य थे.
सरकार ने आयोग को यह ज़िम्मेदारी दी थी कि वे केंद्र सरकार के कर्मचारियों के वेतन, भत्तों और सेवा शर्तों की समीक्षा करें और भविष्य के लिए सिफारिशें दें.
7वें वेतन आयोग के सामने चुनौतियां
7वें वेतन आयोग के सामने पहले और छठे वेतन आयोगों की तरह ही कई चुनौतियां थीं:
- आर्थिक बदलाव: पिछले कुछ दशकों में भारत की अर्थव्यवस्था में काफी बदलाव हुआ था. मंहगाई बढ़ी थी और लोगों की ज़रूरतें भी बदल गई थीं. आयोग को यह सुनिश्चित करना था कि वेतन वृद्धि से सरकारी ख़र्च पर बहुत अधिक बोझ न पड़े.
- वेतन असमानता कम करना: सरकारी विभागों और पदों के हिसाब से कर्मचारियों के वेतन में अब भी असमानता थी. आयोग को ऐसी व्यवस्था बनानी थी जिससे यह असमानता कम हो सके.
- कर्मचारियों का मनोबल बढ़ाना: बेहतर वेतन और सेवा शर्तों से सरकारी कर्मचारियों का मनोबल बढ़ाना और उन्हें ज़्यादा कुशलता से काम करने के लिए प्रेरित करना ज़रूरी था.
7वें वेतन आयोग की सिफारिशें
7वें वेतन आयोग ने नवंबर 2015 में अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी. इस रिपोर्ट में कई महत्वपूर्ण सिफारिशें की गईं, जिन्होंने न केवल सरकारी कर्मचारियों के वेतन और भत्तों को प्रभावित किया, बल्कि उनकी कार्य-व्यवस्था में भी बदलाव लाए.
- वेतन वृद्धि और नया वेतन मैट्रिक्स: 7वें वेतन आयोग की सबसे महत्वपूर्ण सिफारिशों में से एक थी – नया वेतन मैट्रिक्स लागू करना. इस व्यवस्था के तहत कर्मचारियों के वेतन को उनके पद और अनुभव के आधार पर तय किया जाता है, लेकिन पहले की व्यवस्था की तुलना में यह ज़्यादा पारदर्शी और सरल है.
पद का स्तर | न्यूनतम वेतन (₹) | अधिकतम वेतन (₹) |
निम्न | 18,000 | 56,900 |
मध्य | 20,600 | 67,700 |
उच्च | 24,300 | 81,100 |
शीर्ष | 37,400 | 1,23,100 |
(ध्यान दें: उपरोक्त तालिका केवल एक उदाहरण है. वास्तविक वेतन राशि अलग-अलग पदों के लिए अलग-अलग हो सकती है.)
- महंगाई भत्ता (DA) में वृद्धि: 7वें वेतन आयोग ने महंगाई भत्ता (Dearness Allowance – DA) में भी वृद्धि की सिफारिश की. यह भत्ता कर्मचारियों को महंगाई से राहत दिलाने के लिए दिया जाता है. आयोग ने सिफारिश की कि DA को मूल वेतन के एक निश्चित प्रतिशत के रूप में दिया जाए, और समय-समय पर इसका पुनरीक्षण किया जाए.
- अन्य भत्तों में वृद्धि: वेतन और DA के अलावा, 7वें वेतन आयोग ने कई अन्य भत्तों को भी बढ़ाने की सिफारिश की. इनमें शामिल थे –
- मकान का किराया भत्ता (House Rent Allowance – HRA)
- यात्रा भत्ता (Travelling Allowance – TA)
- बच्चों के शिक्षा भत्ता (Children’s Education Allowance)
- चिकित्सा भत्ता (Medical Allowance)
- पेंशन सुधार: 7वें वेतन आयोग ने सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारियों की पेंशन व्यवस्था में भी सुधार की सिफारिश की. इसमें पेंशन राशि बढ़ाने के साथ-साथ पेंशन भुगतान प्रक्रिया को भी सरल बनाने की बात शामिल थी.
- कार्य सप्ताह में बदलाव: आयोग ने सिफारिश की कि सरकारी कर्मचारियों के लिए कार्य सप्ताह को घटाकर 5 दिन किया जाए. साथ ही, कुछ खास परिस्थितियों को छोड़कर, अतिरिक्त काम के लिए अलग से भुगतान करने की बात भी कही गई.
- अन्य सिफारिशें: उपरोक्त सिफारिशों के अलावा, 7वें वेतन आयोग ने सरकारी कार्यालयों में कार्यकुशलता बढ़ाने और प्रशासनिक सुधारों से जुड़ी कई अन्य सिफारिशें भी कीं.
7वें वेतन आयोग की सिफारिशों का प्रभाव
7वें वेतन आयोग की सिफारिशों को सरकार ने 2016 में लागू करना शुरू किया. इन सिफारिशों का सरकारी कर्मचारियों के जीवन और कार्य-व्यवस्था पर व्यापक प्रभाव पड़ा:
- वेतन वृद्धि और बेहतर जीवनयापन: 7वें वेतन आयोग की सिफारिशों के बाद सरकारी कर्मचारियों के वेतन और भत्तों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई. इससे उनका जीवन स्तर बेहतर हुआ और आर्थिक सुरक्षा मजबूत हुई.
- कर्मचारियों का मनोबल बढ़ा: बेहतर वेतन पैकेज और पेंशन सुधारों से सरकारी कर्मचारियों का मनोबल बढ़ा. इससे सरकारी दफ्तरों में कार्यकुशलता में भी सुधार हुआ.
- सरकार के ख़र्च में वृद्धि: हालांकि, वेतन वृद्धि और अन्य भत्तों में बढ़ोतरी के कारण सरकार के ख़र्च में भी काफी इजाफा हुआ.
विवाद और आलोचना
7वें वेतन आयोग की सिफारिशों की सराहना के साथ-साथ कुछ आलोचना भी हुई. कुछ लोगों का मानना था कि आयोग की सिफारिशें सरकारी ख़ज़ाने पर बहुत अधिक बोझ डालती हैं. वहीं, कुछ कर्मचारी संगठनों का कहना था कि वेतन वृद्धि अपेक्षा से कम थी. साथ ही, कुछ लोगों ने यह भी चिंता जताई कि सरकारी नौकरियों में अब पहले जैसी आकर्षकता कम हो जाएगी.
7वें वेतन आयोग ने सरकारी कर्मचारियों के वेतन और सेवा शर्तों में सुधार लाने के लिए एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. इस आयोग की सिफारिशों ने न केवल कर्मचारियों के वेतन में वृद्धि की बल्कि सरकारी विभागों में कार्य-व्यवस्था को भी बदलने में मदद की. हालाँकि, इन सिफारिशों के कारण सरकारी ख़र्च में भी वृद्धि हुई, जिस पर भविष्य में ध्यान देने की ज़रूरत है.