आज़ादी के बाद भारत सरकार के सामने कई चुनौतियां थीं. इन चुनौतियों में से एक सरकारी कर्मचारियों के लिए उचित वेतन व्यवस्था का निर्माण करना भी था. उस समय तक अंग्रेजों के राज में वेतन व्यवस्था अव्यवस्थित थी. कर्मचारियों को मिलने वाला वेतन उनके पद या उनके काम के हिसाब से नहीं, बल्कि उनके नस्ल और पदवी के आधार पर तय होता था.
इसे बदलने के लिए सन 1946 में भारत सरकार ने पहला वेतन आयोग का गठन किया. आइये इस लेख में विस्तार से जानते हैं पहले वेतन आयोग के बारे में.
पहला वेतन आयोग का गठन
पहले वेतन आयोग का गठन जनवरी 1946 में किया गया था. इस आयोग के अध्यक्ष श्री श्रीनिवास वरदाचार्य जी थे. श्री वरदाचार्य एक जाने-माने अर्थशास्त्री और प्रशासक थे. इस आयोग में कुल सात सदस्य थे.
आयोग को सरकार द्वारा यह ज़िम्मेदारी दी गई थी कि वो केंद्र सरकार के कर्मचारियों के वेतन और भत्तों की समीक्षा करे और भविष्य के लिए सिफारिशें दे. उस समय केंद्र सरकार के अंतर्गत आने वाले विभागों में रेलवे, डाक विभाग, कस्टम विभाग और सेंट्रल विस्टा के कर्मचारी शामिल थे.
पहला वेतन आयोग के सामने चुनौतियां
पहले वेतन आयोग के सामने कई चुनौतियां थीं.
- सबसे बड़ी चुनौती थी एक ऐसी वेतन व्यवस्था तैयार करना जो निष्पक्ष हो. यह व्यवस्था कर्मचारियों के पद और उनके काम के आधार पर वेतन तय करे, न कि उनके नस्ल या पदवी के आधार पर.
- दूसरी चुनौती थी उस समय देश की आर्थिक स्थिति. भारत अभी-अभी आज़ाद हुआ था और उसका बँटवारा भी हो चुका था. देश की अर्थव्यवस्था कमज़ोर थी. ऐसे में आयोग को यह भी सुनिश्चित करना था कि वेतन बढ़ोतरी से सरकार के ख़र्च पर बहुत ज़्यादा बोझ न पड़े.
- तीसरी चुनौती थी विभिन्न विभागों में वेतनमान (Pay Scale) में भारी असमानता. उस समय अलग-अलग विभागों में कर्मचारियों को मिलने वाला वेतन एक-दूसरे से बहुत ज़्यादा भिन्न था.
पहला वेतन आयोग की सिफारिशें
पहले वेतन आयोग ने साल 1946 में अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी. इस रिपोर्ट में आयोग ने कई महत्वपूर्ण सिफारिशें कीं जिनका सरकारी कर्मचारियों के वेतन पर सीधा असर पड़ा.
- जीवन निर्वाह वेतन (Subsistence Allowance) की अवधारणा: पहला वेतन आयोग इस सिफारिश के लिए जाना जाता है. आयोग ने सिफारिश की कि सरकारी कर्मचारियों को इतना वेतन मिलना चाहिए कि वो अपने परिवार का पालन-पोषण अच्छे से कर सकें. इस अवधारणा को “जीवन निर्वाह वेतन” कहा गया.
- वेतनमान (Pay Scale) का सरलीकरण: आयोग ने विभिन्न विभागों में अलग-अलग चल रहे वेतनमानों को सरल बनाने की सिफारिश की. इसके लिए आयोग ने कुछ नए वेतनमान प्रस्तावित किए. इन वेतनमानों को तय करते समय कर्मचारियों के पद और उनके दायित्वों को ध्यान में रखा गया.
- चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों के लिए न्यूनतम वेतन में वृद्धि: उस समय सबसे कम पदों पर काम करने वाले कर्मचारियों को “चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी” कहा जाता था. इन कर्मचारियों का वेतन बहुत कम होता था. पहला वेतन आयोग ने इन कर्मचारियों के न्यूनतम वेतन में वृद्धि की सिफारिश की.
पहले वेतन आयोग का प्रभाव
पहले वेतन आयोग की सिफारिशों का सरकारी कर्मचारियों के वेतन और जीवन स्तर पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा. हालांकि, कुछ कमियां भी रहीं.
सकारात्मक प्रभाव:
- वेतन वृद्धि: पहले वेतन आयोग की सिफारिशों के बाद अधिकांश सरकारी कर्मचारियों के वेतन में वृद्धि हुई. इससे उनके जीवन स्तर में सुधार हुआ.
- वेतन व्यवस्था में निष्पक्षता: “जीवन निर्वाह वेतन” की अवधारणा के लागू होने से वेतन व्यवस्था में कुछ हद तक निष्पक्षता आई. अब वेतन कर्मचारी के पद और उसके दायित्वों के आधार पर तय होने लगा.
- चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों को लाभ: सबसे निचले पदों पर काम करने वाले कर्मचारियों के न्यूनतम वेतन में हुई वृद्धि से उन्हें आर्थिक मदद मिली.
- भविष्य के वेतन आयोगों के लिए आधार: पहला वेतन आयोग ने भविष्य के वेतन आयोगों के लिए एक आधार तैयार किया. वेतन आयोगों की यह श्रृंखला आज भी भारत में सरकारी कर्मचारियों के वेतन और सेवा शर्तों को समय-समय पर अपडेट करने का काम करती है.
कमियाँ:
- कुछ कर्मचारी संगठनों का असंतोष: हालाँकि वेतन में वृद्धि हुई, लेकिन कुछ कर्मचारी संगठनों का मानना था कि यह वृद्धि अपर्याप्त थी. उनका कहना था कि महंगाई को देखते हुए वेतन में और भी ज़्यादा वृद्धि की जानी चाहिए थी.
- वेतन असमानता पूरी तरह दूर नहीं हुई: विभिन्न विभागों और पदों के बीच वेतन असमानता पूरी तरह दूर नहीं हो पाई. कुछ विभागों और पदों पर कर्मचारियों को अभी भी ज़्यादा वेतन मिलता था, जबकि कुछ को कम.
पहला वेतन आयोग: निष्कर्ष
पहला वेतन आयोग भले ही स्वतंत्र भारत का पहला वेतन आयोग था, लेकिन इसने सरकारी कर्मचारियों के वेतन और सेवा शर्तों को निर्धारित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया. इस आयोग की सिफारिशों ने वेतन व्यवस्था में निष्पक्षता लाने की कोशिश की और साथ ही साथ सरकारी कर्मचारियों के जीवन स्तर को सुधारने में भी मदद की. पहले वेतन आयोग ने भविष्य के वेतन आयोगों के लिए एक मिसाल भी कायम की, जो आज भी भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ माने जाने वाले सरकारी कर्मचारियों के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.