आज़ादी के बाद भारत सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक थी देश का पुनर्निर्माण और तेज़ी से विकास करना. इस लक्ष्य को पाने के लिए सरकार को कुशल और मेहनती सरकारी कर्मचारियों की ज़रूरत थी. इसके लिए उन्हें उचित वेतन और बेहतर कार्य-व्यवस्था देना ज़रूरी था.
पहले वेतन आयोग (1946) ने सरकारी कर्मचारियों के वेतन में सुधार की दिशा में अहम कदम उठाए थे. लेकिन अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी था. इसी उद्देश्य से 1957 में दूसरे वेतन आयोग का गठन किया गया. आइए, इस लेख में दूसरे वेतन आयोग और उसकी सिफारिशों के बारे में विस्तार से जानें.
दूसरा वेतन आयोग का गठन
दूसरे वेतन आयोग का गठन अगस्त 1957 में किया गया था. यह भारत के स्वतंत्र होने के 10 साल बाद बनाया गया था. इस आयोग के अध्यक्ष श्री जगन्नाथ दास जी थे, जो एक जाने-माने प्रशासक थे. आयोग में कुल छह सदस्य थे.
सरकार ने आयोग को यह ज़िम्मेदारी दी थी कि वे केंद्र सरकार के कर्मचारियों के वेतन, भत्तों और सेवा शर्तों की समीक्षा करें और भविष्य के लिए सिफारिशें दें.
दूसरा वेतन आयोग के सामने चुनौतियां
पहले वेतन आयोग की तरह ही दूसरे वेतन आयोग के सामने भी कई चुनौतियां थीं:
- आजादी के 10 साल बाद देश की आर्थिक स्थिति: भारत को अभी भी आज़ादी के बाद के दशक के आर्थिक और सामाजिक बदलावों से जूझना था. ऐसे में आयोग को यह सुनिश्चित करना था कि वेतन वृद्धि से सरकारी ख़र्च पर बोझ न पड़े.
- कार्मिकों की क्षमता और दक्षता में सुधार: तेज़ी से विकास करने के लिए सरकार को कुशल और मेहनती कर्मचारियों की ज़रूरत थी. आयोग को ऐसी वेतन संरचना तैयार करनी थी जो कर्मचारियों को मेहनत करने के लिए प्रेरित करे.
- वेतन असमानता को कम करना: विभिन्न विभागों और पदों पर कर्मचारियों के वेतन में अभी भी असमानता थी. आयोग को ऐसी व्यवस्था बनानी थी जिससे यह असमानता कम हो सके.
दूसरा वेतन आयोग की सिफारिशें
दूसरे वेतन आयोग ने सन 1959 में अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी. इस रिपोर्ट में कई महत्वपूर्ण सिफारिशें की गईं, जिन्होंने भारत में सरकारी कर्मचारियों के वेतन ढांचे को काफी हद तक बदल दिया.
- वेतन ग्रेड प्रणाली की शुरुआत: यह दूसरा वेतन आयोग की सबसे महत्वपूर्ण सिफारिशों में से एक थी. आयोग ने सरकारी कर्मचारियों के लिए वेतन ग्रेड प्रणाली लागू करने की सिफारिश की. इस प्रणाली के तहत कर्मचारियों के वेतन को उनके पद और अनुभव के आधार पर तय किया जाता है. वेतन ग्रेड प्रणाली आज भी भारत में सरकारी कर्मचारियों के वेतन निर्धारण का आधार है.
पद का स्तर | वेतन ग्रेड का उदाहरण (रूपये में) |
निम्न | 4500 – 7000 |
मध्य | 8000 – 12000 |
उच्च | 13000 – 18000 |
(ध्यान दें: उपरोक्त तालिका केवल एक उदाहरण है. वास्तविक वेतन ग्रेड अलग-अलग हो सकते हैं.)
- महंगाई भत्ता (Dearness Allowance – DA) की शुरुआत: दूसरा वेतन आयोग महंगाई भत्ता या डीए लागू करने वाला पहला वेतन आयोग था. महंगाई भत्ता मूल वेतन का एक निश्चित प्रतिशत होता है, जो कर्मचारियों को महंगाई से राहत दिलाने के लिए दिया जाता है.
- अन्य सिफारिशें: वेतन ग्रेड प्रणाली और महंगाई भत्ता के अलावा, दूसरे वेतन आयोग ने कई अन्य महत्वपूर्ण सिफारिशें भी कीं:
- सेवानिवृत्ति लाभों में सुधार: आयोग ने सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारियों के लिए पेंशन और अन्य लाभों को बढ़ाने की सिफारिश की.
- कार्य कुशलता बढ़ाने के लिए प्रोत्साहन: आयोग ने यह सिफारिश की कि सरकार कर्मचारियों को उनके काम के प्रदर्शन के आधार पर वेतन वृद्धि और अन्य प्रोत्साहन दे.
- कार्यालयीन समय और अवकाश प्रबंधन: आयोग ने सरकारी कार्यालयों में कार्यकुशलता बढ़ाने के लिए कार्य समय और अवकाश प्रबंधन से जुड़ी सिफारिशें भी कीं.
दूसरे वेतन आयोग की सिफारिशों का प्रभाव
दूसरे वेतन आयोग की सिफारिशों को सरकार ने 1959 में ही स्वीकार कर लिया गया. इन सिफारिशों का सरकारी कर्मचारियों के वेतन और सेवा शर्तों पर व्यापक प्रभाव पड़ा.
- वेतन वृद्धि और बेहतर वेतन संरचना: वेतन ग्रेड प्रणाली के लागू होने से सरकारी कर्मचारियों के वेतन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई. साथ ही, नई वेतन संरचना अधिक व्यवस्थित और पारदर्शी थी.
- कार्मिकों का मनोबल बढ़ा: बेहतर वेतन और सेवा शर्तों से सरकारी कर्मचारियों का मनोबल बढ़ा. इससे सरकारी कार्यालयों में कार्यकुशलता में भी सुधार हुआ.
- आर्थिक बोझ: हालांकि, वेतन वृद्धि से सरकार के ख़र्च में भी इजाफा हुआ.
दूसरा वेतन आयोग भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ. इस आयोग की सिफारिशों ने न केवल सरकारी कर्मचारियों के वेतन में सुधार किया बल्कि भविष्य के वेतन आयोगों के लिए भी एक खाका तैयार किया. वेतन ग्रेड प्रणाली और महंगाई भत्ता जैसी सिफारिशें आज भी भारत में सरकारी कर्मचारियों के वेतन निर्धारण का आधार हैं.